लेखनी प्रतियोगिता -19-Mar-2022
'जीवन संध्या'
कईं बार
ढलते हूए सूरज को
संध्या की लाली में
छिपते देखा है
उस अस्ताचल में
सुना है मैंने
जीवन का अन्तिम
मिटता संगीत
रोज ही उस
दिनान्त का वह
निस्तेज होता नजारा
रात के अन्धेरे में
छिपने से पहले
जीवन को
एक सन्देश सुनाता
ढलने से पहले दिन
उजालों से
अलविदा ले
जीवन क नश्वरता की
एक तस्वीर दिखाता
कह देता वह
संध्या से
कि शाम होने को है
उस तम के साये में
रात घनेरी
अन्तिम होने को है
अब घर लौटकर
चिन्ताओं क गठरी
उतार जीवन से
मुक्त हो जाना है
उन तपते हूए
दिन के उजालों से
और कहता
छिपता हुआ दिन
जीवन से
कि हर सवेरा
दिन लेकर
चमक है फैलाता
ऊँचाइयों को पाकर
अन्त में
इसी शाम को
और फिर
रात के अन्धेरे में
कुछ ऐसे ही
छिपकर हमेशा
औझल हो जाता
हालांकि
यह अन्त नहीं
पर
दिन के अन्त की
कहानी है
जीवन की संध्या
और रात के अन्धेरे में
शाम की सन्धि से
लिख गई
जीवन नश्वरता की
अन्तिम लाली है
Punam verma
20-Mar-2022 10:34 AM
Nice
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Anil Kumar
20-Mar-2022 04:04 PM
धन्यवाद
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Abhinav ji
20-Mar-2022 09:18 AM
Nice 👍
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Anil Kumar
20-Mar-2022 04:04 PM
धन्यवाद
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Swati chourasia
20-Mar-2022 04:35 AM
बहुत ही खूबसूरत रचना 👌👌
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Anil Kumar
20-Mar-2022 08:58 AM
धन्यवाद स्वातिजी
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